चौंदकोट के लाल साकेत ने किया कमाल
पहली बार में नीट परीक्षा में हासिल किये 710 नंबर
आर्थाे सर्जन बनना चाहता है साकेत रावत
जणदा देवी (पौड़ी)। चौंदकोट क्षेत्र में जणदा देवी के निकट एक छोटा सा गांव है मरड़ा। इस गांव के एक होनहार साकेत रावत ने हाल में नीट परीक्षा में 720 में से 710 हासिल कर गांव और पूरे क्षेत्र का नाम रोशन किया है। साकेत की इस उपलब्धि पर ग्रामीणों में भी खुशी का माहौल है। नीट में सफलता की खुशी मनाने के लिए गांव पहुंचे साकेत रावत का कहना है कि वह आर्थोपेडिक सर्जन बनना चाहता है।
नीट परीक्षा को लेकर बबाल चल रहा है। इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। परीक्षा में ग्रेस मार्क्स के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1563 छात्रों को रिनीट देने का आप्शन दिया है। इसके बावजूद पेपर लीक और रैंकिंग में कई गुणा उछाल होने का मामला अनसुलझा ही है। जिन छात्र-छात्राओं ने नीट के लिए रात-दिन तैयारी की है, वह एक ट्रामा से गुजर रहे हैं कि अच्छे अंक लाने के बावजूद उन्हें सरकारी मेडिकल कालेज मिलेगा या नहीं।
इस स्थिति को लेकर साकेत रावत भी चिन्तित है। वह कहता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। नीट एक बड़ी और कठिन परीक्षा होती है। वह कहता है कि उसे इस परीक्षा में 720 में से 710 अंक मिले हैं, लेकिन यदि जरूरत हुई तो वह दोबारा परीक्षा देने के लिए तैयार है। उसे दिल्ली के वर्द्धमान महावीर मेडिकल कालेज में आसानी से दाखिला मिल जाएगा, लेकिन वह चाहता है कि अन्य परीक्षार्थियों के साथ इंसाफ हो।
साकेत रावत ने दिल्ली के सर्वोदय सीनियर सेकेंडरी स्कूल हौजखास से इस वर्ष 12वीं की परीक्षा पास की और साथ में नीट परीक्षा भी। उसे 12वीं कक्षा में 96 प्रतिशत अंक मिले हैं जबकि नीट भी पहले प्रयास में ही निकल गयी। साकेत मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट क्षेत्र के जणदादेवी-मरड़ा गांव का निवासी है। उसके पिता कमल रावत प्राइवेट जॉब करते हैं और मां निर्मला गृहणी है। साकेत ने दसवीं में सोचा कि डाक्टर बनना है और इसके बाद दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर को ज्वाइन कर लिया। वह कहता है कि सुबह स्कूल जाता था और शाम को कोचिंग। इसके बाद घर पर भी रिवीजन करता था।
साकेत के अनुसार उसके पास बटनवाला फोन था और उसने पिछले दो साल के दौरान कोई फिल्म नहीं देखी न ही कहीं घूमने गया। वह कहता है कि ऊंचे लक्ष्य के लिए त्याग और मेहनत तो करनी ही होगी। उसके पिता कमल रावत का कहना है कि भले ही वह दिल्ली में रहते हों, लेकिन उनका पहाड़ से गहरा नाता है। उन्होंने अपनी जड़े नहीं छोड़ी। उनका बड़ा बेटा बीएचयू से मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर चुका है। मां निर्मला कहती है कि बेटे की उपलब्धि पर वह बहुत खुश है। उनका यही योगदान था कि साकेत को समय पर खाना और उसकी जरूरतों का ख्याल रखें।